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बिहार चुनाव परिणाम सामने हैं. निश्चित रूप से ये हार बीजेपी-एनडीए की नहीं बल्कि मोदी-अमित शाह की है और इसे उन्हें कम से कम अब तो स्वीकार कर लेना चाहिए. दिल्ली के बाद बिहार में मिली करारी पराजय से मोदी और अमित शाह को ये तो सबक लेना चाहिये कि विकास के मूल मुद्दे से अलग हटकर नकारात्मक बयानों, प्रचार, “डीएनए” और “शैतान” जैसी व्यक्तिगत टिप्पणियों पर जाने का कितना विपरीत असर पड़ता है. ऐन चुनावों के वक़्त संघ प्रमुख का आरक्षण पर बयान, बीफ़ मुद्दा, आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी, यशवन्त सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बिहार के प्रमुख नेताओं की नाराज़गी, सीएम के रूप में स्थानीय चेहरे का ना होना, स्थानीय मुद्दों का अनदेखा किया जाना, बीजेपी नेताओं के बेलगाम बयान भी इस करारी हार का सबब बने. बीजेपी को अब ये भली-भाँति समझ लेने की ज़रूरत है कि सभी चुनाव मोदी या अमित शाह को सामने रखकर नहीं जीते जा सकते. यदि समय रहते बीजेपी ने हार का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर अपने तौर-तरीकों में बदलाव नहीं किया तो आने वाले समय में पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी यही दुर्गति तय है साथ ही ये भी समझा जाने लगेगा कि बीजेपी की उल्टी गिनती शुरू होकर वो भी कॉंग्रेस के पतन के रास्ते की ओर चल पड़ी है.
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